।। आत्माभूमि जगभूमि में और भूमि तिनपाद ।।
।। गमन करो तिन भूमि में, अत्रि भनत श्रुतिवाद ।।
नित्य अनादि सद्गुरु आत्मा के अंदर संसार में और परमेश्वर का धाम ( जो तीन याद अमृत है) मैं स्वच्छंद गमन करने वाला होता है उसी ने अथर्वा ( जो वेदों के प्रसिद्ध ऋषि) विश्वामित्र , उन्मोचन, कुत्स , भृगो , वेन , नारायण (ऋषि) आदि को ब्रह्मा विद्या,विहंगम योग का क्रियात्मक गहन ज्ञान का सदुपदेश देश देकर अपना शिष्य बनाया था
अब हम वर्तमान में यह ज्ञान किसके पास है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण के बाद अर्थात महाभारत काल के पश्चात यह समाप्त हो चुकी थी जिससे लोग तरह – तरह के लोग मन और बुद्धि के धरातल से मन और मंत्रों की संप्रदायों का प्रादुर्भाव करके अपनी दुकान चलाने लगे थे
इसके बाद सन 1888 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के पकड़ी नामक गांव में एक महापुरुष का अवतरण हुआ एक ऋषि कुल में हुआ जिसका नाम “सदाफल देव” रखा गया।
इन्होंने 17 वर्षों की घोर साधना करके उसी नित्य अनाद सद्गुरु की छाया में ईश्वर को प्राप्त किया। उन्होंने कहा ईश्वर है! मिलाऊंगा! साधना के अंतर्गत उन्होंने परमाणु से परमात्मा तक तीनों लोकों में जो – जो ज्ञान विज्ञान है उसको प्राप्त किया और साधना के अंदर ईश्वरीयधार के आधार पर सभी वस्तुओं का अवलोकन करते हुए। एक विश्व का अद्वितीय, सर्वश्रेष्ठ
सदग्रंथ “स्वर्वेद” की रचना अपने हिमालय की कंधरा में बैठकर किया।
।।एक मार्ग प्रभु मिलन का ,अन्य द्वार नहीं कोई।।
।।ब्रह्मविद्या प्रचार में , सहज योग रत सोय ।।
जय सदगुरुदेव जय सदगुरुदेव
प्रेरक :- रेवतीकांत त्रिपाठी