You Must Grow
India Must Grow

NATIONAL THOUGHTS

A Web Portal Of Positive Journalism 

बच्चों को कुपोषण मुक्त बनता आंगनबाड़ी केंद्र

Share This Post

भावना
लूणकरणसर
बीकानेर, राजस्थान

आज़ादी के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में देश जिन चुनौतियों का सामना कर रहा था उनमें बच्चों में कुपोषण की समस्या भी एक थी. देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों में कुपोषण बहुत ज़्यादा थी. गरीबी और आर्थिक पिछड़ेपन के कारण गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं हो पाता था. जिसका असर बच्चों में देखने को मिलता था. इस समस्या से निजात पाने के लिए भारत सरकार द्वारा हर गांव में आंगनबाड़ी केंद्र खोला गया. जहां महिला एवं बाल विकास विभाग तथा स्वास्थ्य विभाग द्वारा मिलकर महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है. गर्भवती महिलाएं व बच्चों का पंजीकरण और टीकाकरण किया जाता है. आगे चलकर इसमें गांव की किशोरी बालिकाओं के लिए पैड्स भी उपलब्ध करवाई जाने लगी.

आंगनबाड़ी कार्यक्रम को भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 3 से 6 वर्ष के बच्चों को और उनकी मां को कुपोषित होने से बचाने के लिए भारत सरकार व बाल विकास सेवा कार्यक्रम के द्वारा शुरू किया गया था. इसके अंतर्गत 6 वर्ष की आयु के 8 करोड़ बच्चों को सम्मिलित किया गया है. इस योजना का शुभारंभ केंद्र सरकार द्वारा 1985 में किया गया था. वर्ष 2010 के बाद राज्य सरकारें भी इसमें सहयोग देन लगी हैं. याद रहे कि लगभग 400 से अधिक जनसंख्या वाले स्थान पर एक आंगनबाड़ी केंद्र की स्थापना का प्रावधान है. जनसंख्या के आधार पर किसी ग्राम पंचायत में एक से अधिक आंगनबाड़ी खोला जा सकता है. आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता और सहायिका इस केंद्र को संचालित करती हैं तथा शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और अन्य संबंधित विभागों के समन्वय से इसे मूर्त रूप दिया जाता है. जिसे आईसीडीएस कहा जाता है. इसके सफल संचालन के लिए प्रत्येक 25 आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए एक आंगनबाड़ी पर्यवेक्षक नियुक्त किया जाता है. जिसे मुख्य सेविका कहा जाता है. यह आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को कार्य से जुड़े मामलों में उनका मार्गदर्शन करती हैं.

लेकिन सरकार के सभी प्रयासों के बावजूद देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां आंगनबाड़ी केंद्र आज भी अपने उद्देश्य और लक्ष्य से पीछे नज़र आता है. जहां जागरूकता की कमी के कारण अभिभावक बच्चों को केंद्र तक नहीं पहुंचाते हैं और इसका लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं. ऐसा ही कुछ राजस्थान के जिला बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक के ढाणी भोपालाराम गांव में देखने को मिला है. जहां माता पिता अपने बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र तक भेजने के इच्छुक नज़र नहीं आते हैं. इस केंद्र की आंगनबाड़ी सहायिका नरेश का कहना है कि ‘हमें बच्चों के माता पिता कहते हैं कि हमारे बच्चो को घर से आंगनबाड़ी लेकर आप खुद जाओ, और फिर बाद में उनको घर भी आप ही छोड़कर जाओगे.’

वह बताती हैं कि ज्यादा गर्मी होने के कारण आंगनबाड़ी में ज़्यादा बच्चे नहीं आते हैं क्योंकि केंद्र में पंखे की व्यवस्था नही है. यहां पर खेलने का मैदान हैं पर उसी जगह कांटेदार झाड़ियां और कंकड़ पत्थर हैं, जिस वजह से बच्चो को खेलने में दिक्कत आती है. यह भी बच्चों का केंद्र तक नहीं आने का एक बहुत बड़ा कारण है. नरेश के अनुसार इस केंद्र पर 21 बच्चों का नामांकन है, परंतु केवल 6 बच्चे ही केंद्र पर आते हैं. वह बताती हैं कि हमारी आमदनी 7000 प्रति माह है. उन्होंने बताया कि इस केंद्र पर हम 3 वर्कर काम करती हैं. जिन्हें कार्यकर्ता, साथिन और आंगनबाड़ी आशा दीदी कहते हैं. आशा को सहयोगिनी भी कहते हैं. वह गर्भवती महिलाओं की देखभाल और उनका टीकाकरण करना तथा कुपोषण का ध्यान रखती हैं. हम बच्चों को खेलकूद के माध्यम से बैठना, बोलना और पढ़ना सिखाते हैं. उन्हें अक्षर ज्ञान के साथ साथ चीजों की पहचान करना भी सिखाते हैं. उन्हें इस प्रकार का वातावरण दिया जाता है कि जब बच्चा पहली बार स्कूल जाए तो उसे डर न लगे और वह स्कूली वातावरण में आसानी से घुल मिल जाए. इसके अतिरिक्त आंगनबाड़ी केंद्र पर सरकार की ओर से 15 से 18 साल की किशोरियों के लिए आयरन की गोलियां और सेन्ट्री पैड वितरित करने भी प्रावधान है.

हालांकि कुछ अभिभावक आंगनबाड़ी केंद्र की महत्ता को समझते हैं और चाहते हैं कि उनके बच्चों को इस केंद्र का भरपूर लाभ मिले. इस संबंध में 27 वर्षीय सुमित्रा कहती हैं कि ‘मेरे दो बच्चे हैं जो आंगनबाड़ी केंद्र जाते हैं. चूंकि हम दोनों पति पत्नी खेतों में काम करते हैं, जिसके लिए हमें घर से सुबह ही निकलना होता है. ऐसे में प्रतिदिन बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र तक पहुंचना और लाना संभव नहीं हो पाता है. यदि कोई आंगनबाड़ी कार्यकर्त्ता हमारे बच्चों को ले जाना और घर तक पहुंचाने का काम करे तो हमें प्रतिदिन उन्हें भेजने में कोई परेशानी नहीं होगी.’ वहीं 24 वर्षीय जानकी भी कहती हैं कि ‘मुझे एक लड़का और एक लड़की है. लड़की पांच वर्ष और लड़के की उम्र तीन वर्ष है.’ वह बताती हैं कि आंगनबाड़ी केंद्र पर कभी कभी तो पानी तक नहीं रहता है. हमारे यहां पानी की बहुत दिक्कत है, सबको पानी खरीदना पड़ता है. ऐसे में हम बच्चों को वहां कैसे भेजे? हालांकि वहां उन्हें उचित पोषाहार मिलता है और आशा वर्कर बच्चों को खेल खेल में पढ़ना भी सिखाती हैं. लेकिन पानी की कमी के कारण बच्चों को कठिनाइयां होती हैं.

वहीं गांव की एक अन्य महिला गीता का कहना है कि ‘मेरे घर से आंगनबाड़ी सेंटर बहुत दूर है. ऐसे में बच्चों को इतनी दूर अकेले नहीं भेजा जा सकता है. वह कहती हैं कि मैं घर के कामों में व्यस्त रहती हूं और पति पेंट का काम करने के लिए अक्सर गांव से बाहर जाते हैं. इसलिए मैं चाहती हूं कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मेरे बच्चो को घर से लेकर जाएं और उन्हें सुरक्षित वापस छोड़ कर जाएं ताकि न केवल हम बच्चों की सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त रहें बल्कि वह कुपोषण से भी मुक्त रहें.’ बहरहाल, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में नौनिहालों को कुपोषण मुक्त बनाने में आज भी आंगनबाड़ी की भूमिका महत्वपूर्ण साबित हो रही है. (चरखा फीचर)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *