नेशनल थॉट्स डेस्क। नब्बे वर्ष की उम्रदराज सीढ़ी पर सुरों से भरी हुई लता दीनानाथ मंगेशकर की आमद! एक ऐसा ‘रेड कार्पेट ऑनर’ जिसके शानदार गलीचे पर चलकर वे उसी तरह दुनिया के सामने आती हैं, जिस तरह 1949 में ‘महल’ के गीत के शुरुआती मुखड़े में उनका प्रवेश है। ‘खामोश है जमाना, चुपचाप हैं सितारे/ आराम से है दुनिया, बेकल हैं दिल के मारे’ …उनके हर प्रशंसक के मन में आज यही कामना होगी कि वे शताब्दियों के आर-पार उजाला फैलाने वाली अपनी आवाज की तरह ही इस दुनिया में भी वैसी ही शतकीय पारी खेलें, जैसा कि उनके प्रिय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर खेलकर उन्हें आनंद से भरते रहे हैं। लता जी के सांगीतिक जीवन की तरह ही उनका व्यक्तिगत जीवन भी उतना ही गरिमापूर्ण और सामान्य जीवन के उतार- चढ़ावों से भरा रहा है जिसे उन्होंने अपनी कठिन कला-साधना से पिछले 75 वर्षों में रचा, संवारा और निखारा है।
पिता से मिली शास्त्रीय संगीत दीक्षा
लता जी की असाधारण सफलता में जिन शुभचिंतकों और आत्मीय जनों का आशीष शामिल रहा है, उन्हें आज भी वे आदर से भरकर याद करती हैं। उनकी जिंदगी के सुनहरे पन्नों में ढेरों अफसाने दर्ज हैं, कई मार्मिक और प्रेरक कहानियां उनके सफेद साड़ी के पल्लू के साथ उतनी ही सादगी से बंधी हुई हैं, जितना कि खुद उनका शानदार व्यक्तित्व रहा है। अपने जमाने की मशहूर तवायफ और संगीतकार जद्दनबाई की एक सीख गुंथी हुई है कि ‘जिस तलफ्फुज के साथ तुम गा रही हो बेटा, एक दिन निश्चित ही बड़ा नाम करोगी।’