धरती अब रसातल जाएगी
हे अंबर के देव सब,
धरती पर ज्वाला धधक रही ।
शीतलता विखरो भू पर अब,
विफलता अब व्याप्त रही ।
महा जलन की इस ज्वाला से,
देव लोक जल जाएगा ।
फिर क्या होगा मत पूछो,
नाहक तुम पछताएगा ।
हाहाकार मचा भूतल पर,
अंबर क्या बचने पाएगा ।
ब्रह्मलोक भी नहीं बचेगा,
नाश गगन पर छाएगा ।
आपस की यहां कलह द्वेष की,
नदी निरंतर बहती है ।
भाई की प्यासी छुड़ी,
भाई पर नित्य यहां चलती है ।
चीर हरण होती अबला की,
युवती की लाज न बचती है ।
भीष्म, द्रोण सब मौन पड़े हैं,
बस न किसी की चलती है ।
कलह द्वेष की इस नगरी में,
इज्जत क्या बचने पाएगी ।
सावधान दिक्पाल सभी अब,
धरती रसातल जाएगी।
मेरे दादा जी द्वारा रचित
स्वर्गीय बाबू सर्वजीत सिंह