माता पिता का हमको अब कर्ज चुकाना है।
अपने बड़े होने का हर फ़र्ज़ निभाना है।।
चलना सिखाया जिसने।
पग पग पकड़ के ऊंगली।।
झुककर उठाया हमको।
तब ज़िंदगी थी संभली।।
दिल से उन्हीं बड़ों के हर दर्द मिटाना है।
अपने बड़े होने का हर फ़र्ज़ निभाना है।।
बापू का था सहारा।
आँचल था माँ का प्यारा।।
डाँटा था हमको जिसने।
हमको कभी दुलारा।।
उनके बुढ़ापे पन से हर मर्ज भगाना है।
अपने बड़े होने का हर फ़र्ज़ निभाना है।।
जिनको समझ न आये।
माँ बाप की मुहब्बत।।
है ज़िंदगी में आती।
उनके सदा मुसीबत।।
ऐसों को ज़िन्दगी का ये मर्म बताना है।
अपने बड़े होने का हर फ़र्ज़ निभाना है।।
इक दिन बनोगे तुम भी।
माता पिता किसी के।।
ढूंढोगे साथ अपने।
सहभागिता किसी के।।
उस दिन तुम्हें भी अपना ये धर्म निभाना है।
अपने बड़े होने का हर फ़र्ज़ निभाना है।।
कवि गीतकार : हरेन्द्र प्रसाद यादव “फ़कीर”
पता : ग्राम टोटहां जगत पुर
जिला : छपरा, बिहार