आज 13 अप्रैल को सारे देश में बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा है। आपके मन में यह प्रश्न
भी उठ रहा होगा कि यह पर्व क्यों मनाया जाता है और इसका क्या महत्व है।
आइए हम आपको बताते हैं कि यह क्यों और कब से मनाया जा रहा है।
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक इस दिन को हमारे सौर नव वर्ष के रूप में भी जाना जाता है।
इस दिन लोग अनाज की पूजा करते हैं और फसल के कट कर घर आ जाने की खुशी मनाते हैं।
साथ ही वह भगवान और प्रकृति के प्रति अपना आभार भी व्यक्त करते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों
में इसे अलग अलग नामों से मनाया जाता है। जैसे असम में बिहू, पश्चिमी बंगाल में
नबा वर्षा, केरल में पूरम विशू आदि। देश में कोरोना वायरस से निपटने के लिए लागू किए गए लाक डाउन
की वजह से इस साल लोग इसे अपने अपने घर में रह कर ही मना रहे हैं। लेकिन इससे न तो उनकी खुशी
कम हो जाती है और न ही बैसाखी का महत्व। बैसाखी के दिन ही हुई थी सिख पंथ की स्थापना।
बैसाखी का पर्व फसल पकने के साथ ही सिख पंथ की स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
इस महीने खरीफ की फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है और पकी फसल के कटने की
शुरुआत भी हो जाती है। किसान इसी खुशी में यह त्यौहार पूरे उत्साह और उल्लास के साथ मनाते हैं।
बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1699 के दिन ही सिख पंथ के दसवें गुरू श्री गोविन्द सिंह जी ने खालसा
पंथ की स्थापना की थी। आज ही के दिन पंजाबी नए साल की शुरुआत होती है। नाम कैसे पड़ा बैसाखी
के समय आकाश में विशाखट नक्षत्र होता है।विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को बैसाख कहते हैं।
आज के दिन ही पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में बैसाखी का पर्व मनाने के लिए बड़ी संख्या
में लोग इकट्ठा हुए थे। इनमें औरतें और बच्चे भी शामिल थे। तब अंग्रेजों की सरकार के जनरल ओ डायर ने
बाग से बाहर निकलने वाले रास्ते बंद करवा कर निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा कर सैंकड़ों लोगों को
मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना से स्वतंत्रता सेनानियों के साथ ही देशवासियों के मन में अंग्रेज सरकार के
खिलाफ नफरत पैदा कर दी थी। जिसकी वजह से स्वतंत्रता आंदोलन और भी जोर पकड़ता गया। आखिर में अंग्रेजों
को भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा और भारत को उनकी गुलामी से आजादी मिल गई।